एक कौवा था
और कौवे की तकलीफ थी,
अपनी जीवन से तभी
एक साधु वहाँ से गुजर रहे थे|
उनके गालो में एक मोती पानी गिरी
साधु चेहरा उठाकर ऊपर देखा
तो कौवा रो रहा था|
साधु ने पूछा रोता क्यो है,
कौवा बोला रोऊ नही तो क्या करू,
ये कोई जीवन दिया, काला बनाया
कोई रंग है|
साधु ने बोला खुश नही है,
कौवे ने बोला बिल्कुल नही
साधु बोला क्या तकलीफ है,
कौवा बोला तकलीफ ही तकलीफ है,
जिसके घर में बैठूँ काव – काव करूँ तो लोग उड़ाए
कोई पालता है मूझको आजतक,
आपने देखा है
किसी को कौवे को कोई पालकर खाना खिलाते हुवे,
रोटी खिलाते हुवे
श्राद्ध में काम आता हूँ,
जुठा खिलाया जाता है मुझे,
तो साधु बोला क्या बनना चाहता है अगर दोबारा मौका मिले,
बनाता हूँ चल आज,
कौवा बोला जिन्दगी में दोबारा मौका मिले तो हंस बनना पसंद करूँगा|
क्या जबरजस्त सफेद रंग,
शांति का प्रतीक वाह|
साधु ने बोला आज बनाया तुझे हंस,
लेकिन एक शर्त है
जाकर एक बार हंस से मिल आ,